गीता प्रेस, गोरखपुर >> भक्त नरसिंह मेहता भक्त नरसिंह मेहतामंगल
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इस पुस्तक में नरसिंह मेहता के चरित्र पर आधारित संग्रह।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्राक्कथन
त्वरितनिहतकंसं योगिहृद्याब्जहंसं
यदुकुमुदसुचन्द्रं रक्षणे त्यक्ततन्द्रम्।
श्रुतिजलनिधिसारं निर्गुणं निर्विकारं
हृदय भज मुकुन्दं नित्यमानन्दकन्दम्।।
यदुकुमुदसुचन्द्रं रक्षणे त्यक्ततन्द्रम्।
श्रुतिजलनिधिसारं निर्गुणं निर्विकारं
हृदय भज मुकुन्दं नित्यमानन्दकन्दम्।।
भक्तराज नरसिंहमेहताजी ने अपने एक भजन में कहा है कि भ्रष्ट होकर इधर-उधर
भटकने वाले मनका निग्रह करने के लिये सत्संग एक प्रबल साधन है।’
परंतु वर्तमान युग में ऐसे कल्याणकारी सत्संग का प्राप्त होना सम्भवतः कुछ
कठिन है इसलिये इसकी पूर्ति बहुत अंशों में प्राचीन महापुरुष, के पवित्र
जीवन-चरित्र से की जा सकती है। इस बात को दृष्टि में रखकर हमने गुजरात के
भक्तशिरोमणि नरसिंह मेहता का चरित्र-चित्रण करने का प्रयास किया है।
परंतु भय है कि बीसवीं शताब्दी के तथाकथित सभ्य और उन्नत समाज को, जो विधि-निषेध के बन्धनों को शिथिल करके व्यक्तिगत स्वातन्त्र्य प्राप्त करना ही परम पुरुषार्थ समझता है तथा ईश्वर और धर्म को मूर्ख लोगों को फँसा रखने के लिये की गयी कल्पना मानकर इनको संसार से सदा के लिए उठा देना चाहता है, यह प्रायः 400 वर्ष पहले के एक भक्त का जीवनचरित्र अप्रासंगिक ही प्रतीत होगा। इतना ही नहीं, उसकी दृष्टि में इस चरित्र की तमाम घटनाएँ निरर्थक, कपोल-कल्पित और अविश्वसनीय मालूम होंगी। वह इस चरित्र को समाज के लिये अत्यन्त अनिष्टकारी समझेगा
परंतु भय है कि बीसवीं शताब्दी के तथाकथित सभ्य और उन्नत समाज को, जो विधि-निषेध के बन्धनों को शिथिल करके व्यक्तिगत स्वातन्त्र्य प्राप्त करना ही परम पुरुषार्थ समझता है तथा ईश्वर और धर्म को मूर्ख लोगों को फँसा रखने के लिये की गयी कल्पना मानकर इनको संसार से सदा के लिए उठा देना चाहता है, यह प्रायः 400 वर्ष पहले के एक भक्त का जीवनचरित्र अप्रासंगिक ही प्रतीत होगा। इतना ही नहीं, उसकी दृष्टि में इस चरित्र की तमाम घटनाएँ निरर्थक, कपोल-कल्पित और अविश्वसनीय मालूम होंगी। वह इस चरित्र को समाज के लिये अत्यन्त अनिष्टकारी समझेगा
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